सांपों का संसार
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दुनिया का सबसे अधिक विषैला सांप ऑस्ट्रेलिया में टाइगर स्नेक होता है जो एक दिन में करीब 400 व्‍यक्तियों को काटकर मार सकता है।
सांपों के पूर्वजों के पैर हुआ करते थे जो धीरे-धीरे समाप्‍त हो गए। अजगर की पूंछ के पास एक जोड़ी अविकसित पैर अभी भी पाए जाते है।
अजगर के पेट में इतने शक्तिशाली पाचक रासायनिक तत्व होते है कि वे निगले गए सूअर हिरण आदि की हडि़डयां सींग को भी पचा लेते है।
दुनिया में कोई भी दो मुंह का सांप नही पाया जाता कुछ सांपों की पूंछ जैसे रेड बोआ ऐसी होती है जो मुंह के समान दिखाई पड़ती है।
कुछ सांप अपने शरीर को थोड़ा फुलाकर एक पेड़ की डाल से दूसरे पेड़ की डाल तक या ज्यादा से ज्यादा 6 मीटर तक छलांग लगा लेते है। उन्हें ही लोग उड़ने  वाले सांप समझ लेते है, परंतु वास्तव में दुनिया में कहीं भी उड़ने वाले या पंख वाले सांप नहीं होते।
वाइपर जाति के एक किस्म के सांप के सिर पर एक छोटी सी हड्डी ऊपर उठी हुई रहती है , जो सींग जैसी लगती है। अत: उससे सींग वाले सांप का भ्रम होता है।
वाइपर जाति का रेगिस्तान में रहने वाला सांप बहुत खतरनाक होता है। उसकी पूंछ में कई छल्ले बने हुए होते है, जब वह चौंकता है या उत्तेजित होता है तो उन छल्लों में कंपन से जोरदार झनझनाहट की आवाज आने लगती है, शायद इसलिए इसका नाम रेटल स्नेक झुनझुना सांप पड़ा।
विश्व का सबसे छोटा सांप थ्रेड स्नेक होता है । जो कैरेबियन सागर के सेट लुसिया माटिनिक तथा वारवडोस आदि द्वीपों में पाया जाता है वह केवल 10-12 सेंटीमीटर लंबा होता है।
विश्व का सबसे लंबा सांप रैटिकुलेटेड पेथोन (जालीदार अजगर ) है, जो प्राय: 10 मीटर से भी अधिक लंबा तथा 120 किलोग्राम वजन तक का पाया जाता है । यह दक्षिण -पूर्वी एशिया तथा फिलीपींस में मिलता है।
पश्चिमी हिंद महासागर के राउंड द्वीप में पाए जाने वाला कील सील्ड वोआ विश्व का दुर्लभ सांप है। विश्व में इसकी कुल जनसंख्‍या सौ से भी कम है।
ज्यादातर मादा सांप अंडे देती हैं, मगर कुछ बच्‍चों को भी जन्म देती हैं, जैसी वाइपर तथा रैड सेंड बोआ।
सबसे खूबसूरत सांप गोल्डन टी स्नेक होता है।
सांपों के बारे में निम्‍न प्रचलित भ्रांतियां एकदम गलत हैं। मसलन सांप जमीन के अंदर गड़े खजाने की रक्षा करते हैं, सांप मनुष्य को सम्मोहित कर देते हैं, संगीत सुनकर झूम उठते हैं, अजगर दूर से किसी को अपनी सांस से खींच लेता है, सांप बदला लेते हैं, कुछ सांपों के पास कीमती दुर्लभ मणि होती हैं,आदि आदि।
विश्व में सांपों की करीब 2500 प्रजातियां पायी जाती है, उनमें केवल 150 जाति के सांप ही जहरीले होते हैं।
भारत में 216 जातियों में से मात्र 53 जातियां विषैली पाई जाती हैं। इनमें से 4 जातियां ही विषैली होती हैं । ये 4 जातियां है नाग (कोबरा)करैत(क्रेट) घोणस (रसल वाइपर) तथा अफई (सौ स्केल वाइपर)।
सांप के बोलने के अंग नहीं होते , वे केवल नाक से सिसकारी भरते हैं। सांप की आंखों पर पलकें नहीं होती, आंखें पारदर्शी झिल्ली से ढंकी हुई रहती हैं। इसकी जीभ स्वाद के अलावा गंध का भी ज्ञान कराती है।
सांप अपने भोजन को चबाकर व टुकड़े करके नहीं खाता, बल्कि पूरा निगलता है। इसके जबड़े इतने लचीले होते हैं कि वह अपने से कई गुना बड़े जानवर को भी आसानी से निगल जाता है।
सर्प -विष अनेक विषैले एंजाइमों का मिश्रण होता है। सामान्यत: लोगों की धारणा है कि विष का रंग काला नीला होता है, जो एकदम गलत है सर्प का विष सुनहरे पीले रंग का तरल द्रव है, जिसमें न गंध होती है न स्वाद।
विश्व स्वास्‍थ्‍य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार सांप काटने से विश्व में प्रतिवर्ष 30 से 40 हजार मनुष्य काल के गाल में समा जाते हैं, जिनमें से 7000 से 12000 भारतीय होते हैं।
मनुष्य की मौत के लिए नाग का विष 12 मिलीग्राम, घोणष का 15 मिलीग्राम ,अफई का 7 मिलीग्राम तथा करैत का 6 मिलीग्राम पर्याप्‍त है।
सर्प-विष से दो औषधियां नाइलोक्सीन तथा कावोक्सीन बनाई जाती है¡।
नाइलोक्सीन सिलिसिक व फार्मिक अम्ल के साथ गठिया के दर्द  में उपयोगी है कावोक्‍सीन तो दर्द कम करने में मारफीन से भी ज्यादा असरकारक है।
सर्प -विष से तंत्रिका तंत्र से संबंधित रोगों ब्लड प्रेशर हृदयगति ,होम्योपैथिक आदि कई जीवन रक्षक दवाएं बनाई जाती हैं। इसलिए सांप का जहर हीरे से कम कीमती नहीं होता। कुछ अत्यधिक मंहगे जहर हैं अफ्रीका के बूमस्लंगए सांप का जहर 2 लाख रुपये प्रति ग्राम तथा बमलेंबी सांप का जहर 5 लाख रुपये प्रति ग्राम है।