कहानी ओलंपिक की
बच्चों ओलंपिक शब्द के बारे में तो आपने जरूर सुना होगा। रोमांच से भरा यह ओलंपिक हर उम्र के लोगों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करता है। इसकी कहानी करीब 3000 वर्ष पुरानी है। पहले यह प्रतियोगिता प्राचीन यूनान में पर्व-त्योहारों के मौके पर ही आयोजित की जाती थी। यूनान की लोककथाओं ने जब राजा इलीसिलास को हराया था तब विजय की खुशी मनाने के लिए इन खेलों की शुरूआत की गई थी। सबसे प्रसिद्ध प्रतियोगिताएं वे थी, जो हर चौथे चाथे वर्ष ओलिम्पिया शहर में आयोजित की जातीं थीं। वैसे शुरू में सिर्फ अभिजात्य वर्ग के लोग ही इन खेलों का आनंद उठाते थे लेकिन धीरे-धीरे सभी वर्ग के लोगों ने न केवल इसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा लेना शुरू किया बल्कि महिलाओं के ऊपर जो खेलों को देखने पर प्रतिबंध था वह भी खत्म हो गया। प्रारंभ में रथों की दौड, कुश्ती व भाला फेंकने जैसे खेल होते थे। इसमें सबसे खतरनाक खेल रथ दौड़ हाती थी जिसमें हर प्रतियोगी को रथ पर खड़े होकर घोड़ों की लगाम हाथ में ले मैदान के 12 चक्कर लगाने होते थे। इसमें अधिकतर रथ मोड़ पर लगाए खंभों से टकराकर उलट जाते थे व प्रतियोगी को अपनी जान गंवानी पड़ती थी। आगे चलकर इन खेलों पर राजाओं का वर्चस्व बढ़ गया जिस कारण 394 में राजा थियोडोसियस प्रथम ने ओलंपिक खेलों का आयोजन बंद कर दिया था।
आधुनिक ओलंपिक खेलों का सिलसिला जब 1986 में शुरू हुआ तब इन प्रतियोगिताओं में मैराथन दौड़ को भी शामिल किया गया। कहते हैं कि ईसा से 490 पूर्व मैराथन नामक स्थान पर हुए युद्ध में यूनान की ईरान पर जीत की खबर देने के लिए फिलिप्पाइपिस नाम के एक धावक ने एथेंस तक लगभग 25 मील बिना रुके दौड़ लगाई थी। विजय का समाचार देते ही इस महान धावक की मृत्यु हो गई थी। खैर यह तो बात हुई मैराथन की पर ओलपिंक खेल इसके बार हर चार साल पर आयोजित होने लगे। सिर्फ 1916 में प्रथम विश्वयुद्ध और 1944 में द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण इनका आयोजन नहीं हो सका।
प्राचीन काल में जिस महीने ओलंपिक खेलों का आयोजन होता था, उस महीने को पवित्र माना जाता था और इस दौरान पूरे यूनान में युद्ध भी रोक दिए जाते थे। आज के समय में विजेता खिलाडि़यों को स्वर्ण, रजत व कांस्य पदक दिए जाते हैं और साथ ही सिर पर ऑलिव की पत्तियों व टहनियों का ताज भी पहनाया जाता है।