पर्यटन स्थल छत्तीसगढ़ भारत के हृदय में बसा छत्तीसगढ़ आज सैलोनियों के आकर्षण का केन्द्र बनता जा रहा है। अनुपम प्राकृतिक छटा, दुर्लभ वन्यजीव सम्पदा व प्राचीन मंदिरों से सजा यह राज्य अपने आप में अद्भुत सौन्दर्य समेटे हुआ है। छोटी-छोटी पर्वत मालाएं और इसकी गोद में अठखेलियां करती हुई नदियां बरबस ही अपनी ओर ध्यान आकर्षित करती हैं।इस प्रदेश का अपना प्राचीन इतिहास रहा है इसका उल्लेख हमें हमारे प्राचीन ग्रंथों रामायण व महाभारत में दक्षिण कौशल के रूप में मिलता है। 1732 से 1818 तक यहां मराठों ने राज किया था। धान की खेती प्रचुर मात्रा में होने के कारण इस प्रदेश को धान का कटोरा भी कहते हैं। प्रसिद्ध पंडवानी कलाकार तीजनबाई के कारण भी इस प्रदेश ने ख्याति प्राप्त की है। वर्तमान में छत्तीसगढ़ की राजधानी है रायपुर। अतीत में यह कलचुरी राजाओं की राजधानी हुआ करती थी। यहां स्थित महामाया का मंदिर, बूढ़ा तालाब व घासीदास संग्रहालय आदि उल्लेखनीय है। रायपुर से मात्र 24 किमी दूर पश्चिमी में स्थित है। भिलाई - यह एक प्रमुख आद्योगिक नगर है। भारत की सबसे बड़ी स्टील इकाइयों में से एक यहां मौजूद है। नगर का मैत्री बाग एक मनोरम स्थल है। भिलाई से ही पांच किमी दूर है देवबलोदा। यहां एक सुन्दर शिव मंदिर है। इसे 11 वीं से 12 वीं शताब्दी के बीच बनवाया गया था। इसकी तुलना अकसर खजुराहों के मंदिरों के साथ की जाती है। महाशिवरात्री के दिन यहां एक बहुत बड़ा मेला लगता है। रायपुर से ही 49 किमी दूर दक्षिण-पूर्व में है राजिम। यहां महानदी, पैरी व सोन्दुर नदियों का संगम होता है। जिसके कारण इस जगह को छत्तीसगढ़ का प्रयाग भी कहा जाता है। यहीं पर 8वीं 9वीं शताब्दी के मध्य बना एक विष्णु मंदिर है यह मंदिर राजिवलोचना के नाम से जाना जाता है। राजिम से ही करीब 10 किमी दूरी पर स्थित वैष्णव पंथ के गुरू महाप्रभु वल्लभाचार्य की जन्मस्थली चम्पारन है। यहां हर साल जनवरी फरवरी के माह में मेला लगता है। पास के ही सघन वनों में एक प्राचीन शिव मंदिर चम्पकेश्वर है। रायपुर से 80 किमी पूर्व में जाने पर आता है सिरपुर। महानदी के किनारे बसा सिरपुर कभी दक्षिण कौशल पर राज करने वाले सर्भपुरा राजाओं की राजधानी हुआ करती थी। 6वीं -10वीं शताब्दी के मध्य यह बौद्ध धर्म के अनुयायियों का एक महत्वपूर्ण केंद्र हुआ करता था। माना जाता है कि 7वीं शताब्दी में चीन के विद्वान ह्वेन सांग भी यहां आए थे। खुदाई द्वारा इस जगह भगवान बुद्धा की विशालकाय प्रतिमाएं मिली हैं। इसी के उत्तर-पूर्व में स्थित है। शिओरीनारायण। माघ पूर्णिमा के दिन यहां हर साल एक मेला लगता है जिसमें लाखों श्रद्वालु भाग लेते हैं। यहीं से करीब 5 किमी दूर है खरोद। यहां सोमवंशी राजाओं द्वारा बनवाए गए मंदिरों के अवशेष देखने को मिलते हैं। इसके 2 खंभों पर रामायण के दृश्य अंकित है। आगे उत्तर दिशा में कई दर्शनीय स्थल हैं जैसे पुरात्वविय महत्व का मल्हार, रुद्राशिव की अद्भुत मूर्ति के लिए विख्यात तालगांव व महामाया के मंदिरों के लिए प्रसिद्ध रत्नापुर आदि। छत्तीसगढ़ के बिलकुल उत्तर में पड़ता है मैनपुर। समुद्रतल से 3781 फुट की ऊंचाई पर स्थित मैनपुर का वातावरण शिमला की याद दिलाता है। प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण इस जगह में बौद्ध मठों की बहुलता है। तिब्बती कालीन व सरभंजा जलप्रपात के कारण यह छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। रायपुर से दक्षिण की ओर जाएंगे तो बस्तर आएगा। यहां मुख्यत: मारिया व मुरीया नाम की दो आदिवासी जनजातियां निवास करती हैं जिन्होंने आज भी अपनी संस्कृति को अक्षुण बनाए रखा है। यहीं से कुछ किलोमीटर दूर स्थित है जगदलपुर जहां का दशहरा मशहूर है। इसकी खासियत यह है कि यह भगवान राम के अयोध्या लौटने के उपलक्ष्य में नहीं बल्कि स्थानीय देवी दंतेश्वरी के लिए मनाया जाता है। 75 दिनों तक चलने वाले इस उत्सव की शुरूआत 15वीं शताब्दी में यहां के ककाटीया राजवंश के लोगों ने की थी जो आज भी जारी है।बस्तर के ही दक्षिण पूर्व में जाने पर दिखती है कंगेर घाटी। यह प्रकृति प्रेमियों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं। 34 किमी लम्बी व 6 किमी चौड़ी इस घाटी में शाल वृक्षों का घना जंगल है। यहां आप चीता, लोमड़ी, जंगली सुअर, भालू, हिरन, आदि सभी दुलर्भ प्रजातियां देख सकते हैं। यहां के प्रमुख आकर्षण हैं तीतागढ़ जलप्रपात, कैलाश गुफा आदि। इसे एक राष्ट्रीय उद्यान के रूप में विकसित किया गया है। कैसे जाएं : छत्तीसगढ़ देश के प्राय: सभी प्रमुख नगरों से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। यह रेलमार्ग द्वारा विशाखापट्टनम, हावड़ा, इलाहाबाद व मुंबई से जुड़ा है। अगर आप हवाईजहाज से यात्रा करते हैं तो नागपुर, मुंबई व भुवनेश्वर से रायपुर के लिए उड़ाने सुलभ हैं।
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