मठों की भूमि लद्दाख
पिघलती बर्फ, पथरीले पहाड़, चमकती शुभ्र चांदनी और खुला नीला आकाश। लामाओं और मठों की इस भूमि में यूं तो जीवन की गति बहुत धीमी है पर गौर से देखा जाए तो यहां की प्राकृतिक छटा पल-पल बदलती है।
मुख्‍य आकर्षण
लेह पैलेस- पहाड़ की चोटी पर स्थित इस महल को यहां के राजा सिंग्‍मे नामगयाल ने सन 1645 में बनवाया था। इसी महल के प्रासाद में एक मठ है नामग्‍याल त्‍सेमो जिसका निर्माण करीब 1445 में हुआ था। यहां एक अप्रियतम साढ़े सत्रह मीटर ऊंची बुद्ध की मूर्ति भी है। नामग्‍याल पहाड़ी से आप चाहें तो लद्दाख की खूबसूरती का भरपूर नजारा ले सकते हैं।
जापानी मंदिर- लेह के पूर्वी इलाके में स्थित है यह मंदिर। जापानियों द्वारा बीसवीं शताब्‍दी में बनवाया गया यह मंदिर जापानी वास्‍तुकला का एक अनूठा नमूना है।
शंकर मठ- लेह से बिल्‍कुल सटा हुआ उत्‍तर की दिशा में शंकर मठ है जिसमें अनगिनत मिनिएचर पेटिंग्‍स हैं। मान्‍यता है कि इसे गेलुकम्‍पा वंश के लामाओं ने अपने इष्‍ट देवता अवलोकेश्‍वर पद्माहर को समर्पित किया था। इस खूबसूरत मठ से आप लद्दाख का विहंगम दृश्‍य भी देख सकते हैं।
आलची मठ- यह मठ लेह आने वाले सैलानियों के लिए एक स्‍वप्‍न सरीखा है। लेह से डेढ़ घंटे 65 किलोमीटर दूर स्थित इस मठ में हजारों वर्ष पुराने भित्ति चित्र व काष्‍ठ निर्मित उत्‍कृष्‍ट नक्‍काशी है। आलची मठ में आभूषणों से सुसज्जित बीस फीट ऊंची एक आकर्षक मूर्ति भी है।
लद्दाख में देखने योग्‍य वैसे अनेकों स्‍थल हैं जैसे हजारों वर्ष पुराना लामायरू मठ, भगवान बुद्ध की स्‍वर्णजणित मूर्तियों से सुसज्जित हेमिस मठ, प्राचीन मुखौटों और अस्‍त्र-शस्‍त्र का संग्रहालय स्पितक मठ आदि
कैसे पहुंचे - लद्दाख के मुख्‍यालय लेह में हवाई अड्डा अब निर्मित हो चुका है जिसके द्वारा आप कुछ ही घंटों में यहां पहुंच सकते हैं। अगर आप रोमांच के शौकीन हैं तो मनाली से लेह तक की बस यात्रा आपके लिए सर्वोत्‍तम है। श्रीनगर से भी आप सड़क मार्ग द्वारा यहां पहुंच सकते हैं।
कब जाएं- लद्दाख में सैर का समय जून से सितंबर के बीच का है। इस समय आप यहां जाकर  यहां के लद्दाखी महोतसव का भी लुत्‍फ उठा सकते हैं। इस महोत्‍सव में कलाकार तरह-तरह के मुखौटे पहनकर संगीत की धुन पर नृत्‍य करते हैं।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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