दक्षिण एशिया का 'महाभारत'
प्रेम शुक्ल
मध्य एशिया के दो देश लगभग बर्बादी की कगार पर है। इराक में हर वर्ष औसतन 10 हजार से अधिक लोग आतंक की आग में भस्म हो रहे हैं। दक्षिण एशिया और मध्य एशिया के बीच सेतु देश है अफगानिस्तान। तालिबान और अल-काइदा से लड़ते-लड़ते अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना थक चुकी है। अफगानिस्तान से फैली इस्लामी कट्टरता की आग पाकिस्तान को अपनी आगोश में ले चुकी है। पाकिस्तान का उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत और फेडरली एडमिनिस्टर्ड टेरिटरी (फाटा) इस्लामाबाद की सत्ता से बाहर जा चुका है।
यदि अमेरिका ने समय रहते व्यापक हस्तक्षेप नहीं किया तो पाकिस्तान के कई टुकड़े हो जाएंगे। पाकिस्तान तो पाकिस्तान पूरा दक्षिण एशिया हिंसा की आग में जल रहा है। श्रीलंका पिछले तीन दशकों से अलगाववादी आंदोलन झेल रहा है और भारत में इस्लामी आतंकवाद अब कश्मीर की वादियों से निकल कर शहर-दर-शहर अपना पांव पसारता जा रहा है। जहां इस्लामी आतंकवाद नहीं है वहां नक्सलवाद, मिजो, बोडो, उल्फा, नागा अलगववाद तांडव कर रहा है। नेपाल में माओवादी और मधेशी अलगाववादी ताकतें फिलहाल सत्ता की हिस्सेदार हैं इसलिए नेपाल में शांति की पुरवाई बह रही है। वहां कब अलगाववाद फिर सिर उठा लेगा यह तो बीजिंग के लाल गुप्तचर भी नहीं बता सकते। बांग्लादेश में चकमा समेत तमाम अलगाववादी ताकतें सक्रिय हैं। भूटान में गाह-गबाहे नेपाली अलगाववादी सिर उठा लेते हैं। कुल मिला कर पूरा दक्षिण एशिया गृहयुद्ध की आग में जल रहा है। यह आग कोई आज नहीं लगी है। पिछले डेढ़ हजार वर्षों से यह क्षेत्र अस्थिर है। यदि कहां जाए कि दक्षिण एशिया पृथ्वी के `महाभारत´ का कुरूक्षेत्र है तो यह किसी भी कोण से अतिशयोक्ति नहीं। यूरोप, अमेरिका, अफ्रीका समेत दुनिया की किसी अन्य सभ्यता ने इतना असंतोश और आपसी मारकाट का सामना नहीं किया है जितना दक्षिण एशिया और विशेशकर भारतीय उपमहाद्वीप ने। वैसे इस अंतर्कलह का इतिहास ईसा पूर्व छठी से चौथी सदी के बीच ही प्रारंभ होता है। मौर्य वंश के चंद्रगुप्त मौर्य ने ईसापूर्व 322 में नंदवंश से सत्ता छीन ली थी। सम्राट अशोक का कलिंग युद्ध अतंर्कलह का परिणाम था। ईसापूर्व तीसरी सदी से ईस्वी सन की सातवीं सदी के बीच सातवाहन, कुशाण, गुप्त, वर्धन वंशों ने अपने-अपने साम्राज्यों के विस्तार के लिए सतत युद्ध किए। हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद देश पर चार राजपूत वंशों ने अपना साम्रात्य कायम किया। कन्नौज में गुर्जर प्रतिहार, अजमेर और दिल्ली में चौहान, बुंदेलखंड में चंदेल और गुजरात में सोलंकी वंश ने अपना साम्राज्य कायम किया। ये सारे राजपूत आपस में लड़ते रहे और वर्तमान पाकिस्तान पर अरबी हमलावरों ने कब्जा कर लिया। दक्षिणी हिंदुस्थान में चोला वंश के राजओं और श्रीलंका के शासकों के बीच युद्ध प्रारंभ हुआ। बारहवीं सदी में श्रीलंका के राजा विजयबाहु के तीन पुत्रों के बीच तख्त के लिए गृहयुद्ध छिड़ा। पराक्रमबाहु यह युद्ध जीतने में कामयाब हुआ और उसके वंशजों ने अगली छह सदी तक राज्य किया। दक्षिण भारत में आठवीं से बारहवीं सदी के बीच में चालुक्य, पललव, चोला और राष्ट्रकूट वंशों के बीच युद्ध हुए।चौदहवीं से उन्नीसवीं सदी के बीच तुगलक, लोधी और मुगल वंश सत्ता पर काबिज होने के लिए लगातार लड़ते रहे। इस कालखंड में हुई प्रमुख लड़ाइयों के इब्राहिम लोधी और बाबर के बीच हुआ पानीपत का युद्ध, बाबर और राणा सांगा के बीच हुआ कानवा का युद्ध, अकबर और राणा प्रताप के बीच हुई हल्दी घाटी की लड़ाई, मराठों और अहमदशाह अब्दाली के बीच हुई पानीपत की लड़ाई का शुमार है। ध्यातव्य रहे कि जब भारतीय उपमहाद्वीप लगातार युद्धों का शिकार रहा, उस समय आज के विकसित कहलानेवाले देशों को अमन-चैन से अपना विकास करने का मौका मिला। उदाहरणार्थ स्पेन, फ्रांस, और जर्मनी से बहारी हमले के लिए संशकित जरूर रहा, पर 15वीं सदी की कुछ सामंती लड़ाइयों के अलावा शांत रहा। शोगन काल के पहले जापान में कुछ आंतरिक कलह रही पर शोगन काल के बाद जापान को कभी अतंर्कलह का सामना नहीं करना पड़ा। दक्षिणी और उत्तरी अमेरिकी का सिविल वॉर भी कुछ काल के लिए ही रहा। इसी कारण प्राचीन संस्कृति, परंपरा और विज्ञान के बावजूद भारतीय उपमहाद्वीप की अपेक्षित प्रगति नहीं हो पाई। बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका और पाकिस्तान का भूभाग यदि क्षेत्रवाद, जातिवाद, संप्रदायवाद के पचड़ों से मुक्त हो जाए तो दुनिया का यह सबसे विकसित हिस्सा बन सकता है। समूह-8 के किसी भी देश की तुलना में इस भूभाग के पास बेहतर संसाधन, बाजार, श्रमशक्ति, खनिज प्रचुरता, उपजाऊ भूमि है। बावजूद इसके यह दुनिया का सबेस पिछड़ा इलाका क्यों? क्योंकि पिछले 1500 वर्षों से यह उपमहाद्वीप स्थिर ही नहीं हो पाया है। पिछले छह दशकों में ब्रिटिश औपनिवेशिक शक्ति से मुक्त होने के बावजूद इस हिस्से को हिंसा मुक्त नहीं किया जा सका। हिदुंस्थान और पाकिस्तान के बीच पिछले छह दशकों में चार बार सैन्य भिड़ंत हो चुकी है। इस भिड़ंत के अलावा ये पूरा क्षेत्र गृहयुद्धों से संत्रस्त है। बांग्लादेश में पिछले तीन दशकों में में चकमा हिंसा में लगभग 20 हजार लोग मारे जा चूके हैं। बांग्लादेश से ही सटे भूटान में स्थानीय द्रुकपा समुदाय और नेपालियों के बीच लंबे समय से संघशZ चल रहा है। 1980 के दशक में लगभग एक लाख नेपालियों को भूटान से भाग कर नेपाल और हिंदुस्थान में शरण लेना पड़ा।नेपाल में मधेशियों और नेवारियों के बीच 1980 के दशक में जो कलह शुरू हुई तो आज दिन तक उसका कोई समाधान नहीं हो सका है। नेपाल के शाही परिवार ने 1960 से 1980 के बीच तराई में मौजूद 13 हजार नेवारी परिवारों को लगभग 27 हजार हेक्टेयर कृशि योग्य भूमि आबंटिक कर दी। साथ ही साथ नियम बनाया कि किसी मधेशी को नेपाली नागरिकता तभी मिलेगी जब वह अपने नेपाल में निवास का 15 वर्षों का प्रमाण पेश करे। आज नेपाल में मधेशी पार्टी का अपना राश्ट्रपति है। जो माओवादी कल तक तराई से लेकर राजधानी काठमांडू तक आंतक के पार्याय थे उनका नेता पुश्पकुमार दहल `प्रचंड´ आज नेपाल के प्रधानमंत्री हैं। नेपाल का यह अस्थायी अमन कब अराजकता में बदल जाए कोई बता नहीं सकता।श्रीलंका में 1970 के दशक में त्रिंकोमाली और बिट्टकालोआ जिलों में उपजाऊ भूमि के बंटवारे को लेकर सिंहली और तमिल समुदायों के बीच विवाद शुरू हुआ। श्रीलंका सरकार ने महावेली के कैचमेंट एरिया में सिंहली और तमिल समुदाय के बीच 6:1 के अनुपात से भूमि आबंटन किया। श्रीलंका सरकार की नीतियों के चलते दोनों तमिल बहुल जिलों में सिंहली आबादी तेजी से बढ़ी। 1920 के दशक में त्रिंकोमाली और बिट्टकालोआ में 4.5 फीसदी सिंहली आबादी थी, 1980 में यह बढ़ कर 33.9 फीसदी हो गई थी। बढ़ती आबादी और सरकार की पक्षपातपूर्ण नीति के कारण श्रीलंका में तमिल अलगाववाद का जन्म हुआ। अब तक इस अलगाववादी आंदोलन में लगभग एक लाख लोग मारे जा चके हैं। पाकिस्तान में शिया बनाम सुन्नी लड़ाई लंबे समय से चलती रही है। पठान बनाम सिंधी, सिंधी बनाम पंजाबी सूबे की लड़ाइयां पुरानी पड़ चुकी हैं। अब देवबंदी बनाम टकाटक सुन्नी ब्रिगड मे जिहाद छिड़ा पड़ा है। आंतकवाद इस्लामाबाद को अपने आगोश में ले चुका है। भारत का विभाजन वैिश्वक समुदाय का सबसे बड़ा विस्थापन था। एक करोड़ से अधिक लोग अपने पुरखों की जमीन से हट गए। कश्मीर चाहे पाकिस्तानी कब्जे वाला हो या भारत अधिकृत वह पिछले साठ वर्षों से लगातार अस्थिर है। भारत में ऐसा कोई प्रांत शेश नहीं जहां जाति, धर्म, भाशा, विचार के आधार पर आंतकी कार्रवाई न हो रही हो। केरल और तमिलनाडु इस्लामी आतंकवाद की जद में है। आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उड़ीसा समेत देश के 13 प्रदेशों में नक्सली आतंकवाद सिर चढ़ कर बोल रहा है। बिहार में जातीय सेनाएं दशकों से रक्तपात कर रही है। उड़ीसा में कंधमाल जल रहा है। मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराश्ट्र, कर्नाटक, दिल्ली आदि सिमी से हलाकान हैं। पिश्चम बंगाल कभी वाममोर्चे तो कभी नक्सली लड़ाई से हैरान रहता है। दक्षिण एशिया का कोई हिस्सा नहीं है जो अस्थिर न हो। यह अस्थिरता भारतीय उपमहाद्वीप के विकास को विनाश में तब्दील कर रही हैं। दुनिया के किसी कोने में इतना रक्तपात नहीं हो रहा। क्या इसे रोकने की दिशा में हमारे पास कोई रणनीति है?
विस्फोट डॉट कॉम से साभार